Friday, August 28, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
हा हा हा सुबह सुबह बडिया तोहफा बधाई
बधाई !
बहुत बधाई !
स्वदेश प्रेम नज़र आ रहा है कीचड़ मे कमल मुरझा नही रहा है खिलखिला रहा है। हा हा हा हा,बढिया।
बहुत बढिया!!! कमल तो अखिर कीचड में ही रहेगा!
एक बात जो कि मैं कईं दिनों से सोच रहा हूँ,वो ये कि आपके अधिकांशत: कार्टूनों में कुत्ता क्यूँ दिखाई देता है..:)
कीचड़ का मज़ा तो है गुरू. साफ़ दिखाई दे रहा है.
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