Wednesday, August 26, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
बचपन से बढ कर कौन सी अवस्था हो सकती है सब गलतियां माफ ---
हा...हा...हा...
बहुत ही मज़ेदार
तभी पिटाई हो रही है..:)
हा हा हा हा हा हा
यह चुनावी झटके का कमाल है...ऐसा सदमा लगा हैं कि बचपन में पहुँच गए हैं. :)
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