Wednesday, May 20, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
jai ho.....chatukarita ki !
गांधी फण्डा।
क्या जरुरत है जुड़ने की जब सब आकर यूँ ही जुड़ रहे हैं. :)
Bahut sundar..
Aap sachmuch badhaayee ke paatr hain.
मेरा मानना है कि जिस तरह यूपीए को समर्थन देने वालों की बाढ़ आ गई है उसे देखते हैं यहां भी एक 'अपर सर्किट' लगा देना चाहिए था।
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