
Tuesday, May 19, 2009
Monday, May 18, 2009
Thursday, May 14, 2009
आज थोड़े दर्द की बात, कार्टून बाद में
कल किसी गुमनाम महाशय ने आरोप लगाया था कि मैने कप्तानजी के कार्टून से प्रेरित होकर यह कार्टून बनाया है। इससे मन आहत हुआ है, एक पल को सोचा ब्लॉग बंद कर दूं। अपने बीस वर्षो के करियर में पहली बार मुझे किसी ने ऐसी टिप्पणी की, वह भी गुमनाम।
कार्टूनिस्ट के अवचेतन मन में उसके बनाए पुराने कार्टून कौंधते रहते हैं। इसी के फलस्वरुप स्थिति के हिसाब से कई बार वह अपने पुराने सृजन से मिलती-जुलती कृति दोहराता है। कई बार एक ही विचार एक ही समय में आकाशगंगा में तैरता हुआ दो व्यक्तियों के मन मस्तिष्क में कौंधता है।
इसका अर्थ यह नहीं होता कि दूसरे व्यक्ति ने किसी के विचार की नकल की हैं महाशयजी को यह बताना चाहूंगा कि वर्षो पहले इसी तरह तरह का कार्टून मेरे द्वारा बनाया गया था। कभी कभी सम्माननीय आर के लक्ष्मण साहब के काटरून में भी अपने पुराने संग्रह से प्रेरणा का अंश दिखाई देता और अमूमन यह सामान्य सी बात है।
कार्टूनिस्टों की जो नई पौध पनप रही है, कभी- कभी वे वरिष्ठ कार्टूनिस्टों के सृजन से प्रेरणा लेकर ही अपनी दिशा तय करते है, तथा कार्टून कला के सिद्वांतों को समझते हैं और श्रेष्ठ सृजन के लिए प्रयासरत रहते हैं।
लंबी दिमागी माथापच्ची और मानसिक पीड़ा के बाद ही एक कार्टून का जन्म होता है। कार्टूनिस्ट समाज की अनियमितताओं व विषमताओं से परेशान रहता है। स्वयं दर्द में डूबकर ही वह पाठकों को मुस्कान के साथ ही विचारमनन की प्रेरणा देता है। कार्टूनिस्ट का यह दायित्व होता है कि वह समाज की विद्रूपता पर इस तरह से कटाक्ष करे कि वह व्यक्तिगत न लगे, जो कि काटरूनिस्टों के लिए चुनौतीपूर्ण कार्य है।
मैं काजल कुमार जी व कप्तान जी का आभारी हूं, जिन्होंने काटरूनिस्ट होने के नाते मेरी भावनाओं को समझा।