Tuesday, May 18, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
4 comments:
चलो कुछ सफाई ही हो जायेगी
करोड़ों कमा चुके खिलाड़ियों के साथ ये समस्या नहीं आएगी..........हाँ दर्शकों के सामने ऐसी स्थिति आ सकती है...
वैसे करारा व्यंग्य है
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
जोर का झटका धीरे से लगे।
यह तो होना ही है...
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