Thursday, May 13, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
8 comments:
जय हो आपकी
बहुत ही मारक...........
और क्या हर समय बेचारे खेलते ही रहें...
...लाजवाब !!!
अच्छा है हरिओम जी.. पर कुछ नयी सोच नहीं दिखी.. :(
अति सुन्दर
Jay Ho!!!!
Yaa
Paraajay HO!!!
ha ha ..great one sir ji !!!
अच्छा लगा यह बेलागपन
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