Sunday, April 25, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
4 comments:
बहुत खूब तिवारी जी, लगता है की पूरी पार्लियामेंट इसमें डूबी हुई है. वैसे आयकर वाला जो इसे खींच रहा है उसकी जेब में भी चोरी का माल है
सर, सलीके से आपने व्यवस्था को नंगा किया है। कामगारों को निकम्मा बनाने वाले इस अमीरजादों के इस खेल को तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिए। यह न सिर्फ राष्ट्रविरोधी गतिविधि है बल्कि देश को बर्बाद करने की विदेशी साजिश भी है।
बहुत खूब. वाकई हमाम में ये सभी नंगे ही है...
वाह! बहुत ही शानदार...मजा आया....
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