Wednesday, January 20, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
सारे क्रिकेटरों को यह कार्टून
दिखाने के साथ-साथ पढ़वाया भी जाए!
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"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
ताउम्र या मरने के बाद भी भूत बनकर !!
सही सलाह बुजुर्ग की!! :)
मरने के बाद भी वोट जुटाऊ होते है. ऐसा कोई धंधा नहीं.
यही बात लालू के बेटा नहीं ही माना न.
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