Tuesday, January 19, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
4 comments:
जय हो!!
हा-हां , इन्ही गुलामो ने तो देश का बेडा गर्क किया !
क्या बात है? ऐसी प्रखर सोच जो उड़ती चिड़िया के पंख गिन ले। बधाई।
बहुत बढ़िया चमचा है. दूर तक जायेगा.
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