Monday, December 14, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
3 comments:
हा हा हा जरूरी है भाई ....आखिर इतनी डिमांड जो हो रही है ..देर सवेर हमारी गली भी एक स्टेट बन ही जाएगा .......बस नेताजी की कैंची की धार बनी रहे
कुल्हाडई रखो..काफी बड़े बड़े राज्य हैं..कब तक कैंची से काम चलेगा. :)
:)
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