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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
बच्चे, मन के सच्चे।
बच्चों को बच्चा न समझें, तब तक ही अच्छा। वरना कभी भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। हरिओम जी तो अनुभवी हैं, इसलिए अपना अनुभव उन्होंने हमें कॉर्टून के माध्यम से बता दिया। प्रश्न यह है कि हमने उन्हें कहॉं तक समझा।
डॉ महेश परिमल
Baccho ke Doordarshita aur suzbooz ka utkrashtha udahran hai sibbal sahib ke nirnaya par samyik kataksh bhi hai
बहुत बढिया! अब बच्चे भी राजनिती समझने लगे हैं।
ये आजकल के बच्चे है...सब जानते है...
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