Friday, September 11, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
ऐसा भी होता है !
बहुत पुराणी बात है हमारे गांव के खींव सिंह एक सेठ के ड्राईवर थे उन दिनों गिने चुने लोगो के पास ही गाडियां होती थी और गिने चुने ही ड्राईवर ! चुनावों का समय था सेठ जी अपनी गाड़ी से कहीं रेगिस्तानी रास्ते से जा रहे थे , अपने परिवार के साथ चुनावी चर्चा में उन्होंने चुनाव लड़ रहे ठाकुर मदन सिंह जी , दांता पर कोई गलत टिप्पणी करदी ! बस फिर क्या था मदन सिंह जी के फेन ड्राईवर खींव सिंह को सेठ जी की टिप्पणी नागवार गुजरी और वे रेगिस्तान में ही सेठ जी जीप छोड़कर चले आये |
यह भी खूब कही....
AB KYA HOGA ?
Hartal ka Kabhi Bhi Mood banne par Yatriyo ka Bhagwan hai malik hai isliye pahle bhagwan se prarthna karna hogi ki ve unko sadbudhi de ki yartriyo ki suvidhao ka khyal rakhte hue phir hartal kare
Chawla
क्या मूड बना है!! मौसम देखकर बना होगा. :)
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