Monday, August 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
10 comments:
ये वाकई खतरनाक है | और हाल फ़िलहाल इससे बचने का कोई तरीका भी नहीं सूझ रहा |
हकीकत को उजागर करता कार्टून।
बधाई!
घबराने की कोई बात नहीं यह नीचे नहीं गिरती, उपर ही चढ़ती है।
कोई नही बचा सकता।
bahut khatarnak:)
वाह वाह बहुत सही
द्विवेदी जी ने बिल्कुल सही कहा "यह नीचे नहीं गिरती, उपर ही चढ़ती है।"
खूब्!!!
हरिओम जी,
जब भी ढाते हो, गजब ही ढाते हो। शब्दकोश में यदि प्रगति को महँगाई नाम दे दिया जाए, तो सचमुच देश कितनी प्रगति करेगा, यह कोई सोच सकता है। बधाई बधाई और बधाई
डॉ महेश परिमल
हरिओम जी,
जब भी ढाते हो, गजब ही ढाते हो। शब्दकोश में यदि प्रगति को महँगाई नाम दे दिया जाए, तो सचमुच देश कितनी प्रगति करेगा, यह कोई सोच सकता है। बधाई बधाई और बधाई
डॉ महेश परिमल
Post a Comment