Monday, July 20, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
9 comments:
वाह!...बहुत ही बढिया कटाक्ष मिश्रित व्यंग्य....
मज़ा आ गया जी फुल्ल-फुल्ल
देश की गुप्त नीतियां सार्वजनिक कर रहे हैं,कंही आपको ही आंतकवादी करार न दे दे नेताजी नाराज़ होकर्।सटीक्।
waah gazab ha ha
वाह वाह क्या खूब लाजवाब बधाई
बहुत सही कहा.
क्या ढंग है निपट्ने का!!!
Vaah bhai..... mazaa aa gaya itnaa teekha vyang mara hai..... lajawaab
वाह जी वाह
satik jawaab
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