Tuesday, July 7, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
2 comments:
areee............!!!!!!!!!!!!! ye sare k sare cartoon aapne kahi lehari se prabhavit ho kar to nahi banaye...????
lehari k cartoon aapse kahi badiya he.....
thoda apna dimag lagana bhi shuru karo....
हरिओमजी, लगता है आपने अपने आसपास के लोगों के भी खूब कार्टून बना रखे हैं जो आपको चैन से नहीं बैठने देते. पता नहीं कौन कौन 'गुमनाम' रहकर आप पर 'उल्टियाँ' करता रहता है. बेशक लहरी जी एक बेहतरीन कार्टूनिस्टcum इलेस्ट्रेटर हैं, पर आप भी कम नहीं हैं जनाब. ऐसी वाहियात बकवासों से परेशान न हों..अपना काम करते रहें...मैं आपके कार्टून देखता रहा हूँ और यकीन से कहता हूँ कि हो सकता है कि आपकी लाइनें 'उन्नीस' हों पर आयडिये हमेशा आपके 'सौ' होते हैं और एक कार्टूनिस्ट की सफलता के लिए लाइनें नहीं आयडिये ही महत्वपूर्ण होते हैं. रही उन गुमनाम महाशय की टिप्पणी की तो उसे नजरंदाज कर दो, यदि ऐसे लोग 'जनसत्ता','हिंदुस्तान','नवभारत टाईम्स','राष्ट्रिय सहारा' के संपादक होते तो क्या हम 'काक','राजेंद्र','गोविन्द' के बेहतरीन कार्टूनों से रूबरू हो पाते?
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