Wednesday, June 10, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
9 comments:
बहुत सुन्दर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत ही उम्दा व्यंग्य किया है आपने
Saanp bhi mar gaya aur
cartoon ki lathi bhi
बहुत ठाड़े बच्चे हैं भाई, सांप से भी कड़े, शायद इसीलिए फिर भी जी रहे हैं.
बहुत खूब व्यंग्य है बधाई
सरकारी लापरवाही के इस अन्दाज को आपने बडॆ अच्छे तरीके से कारटून मेँ उतारा है गरीब बच्चोँ क़ी यही हैसियत होती है....दीपा
hahahahhahaa bahut hi badiya
अब बस अनाकोंडा निकले की देरी है ...बढ़िया कमेन्ट है....आपसे एक बार भोपाल में मुलाकात हुई थी ..जब rk laxman ji भोपाल आये थे ..आपके कार्टून की प्रदर्शनी भी लगी थी ...कार्टून वाच का प्रतिनिधित्व किया था मैंने
zehar ko zehar hi maarta hai.haha
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