Tuesday, May 12, 2009
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
5 comments:
अब दो हाथ हैं
तो कहां कहां बढ़ाऊं
आप लोग खुद ही
बढ़ाकर स्विस बैंक
क्यों नहीं पहुंचा देते
badiya shaandar...
wese me aap k roz denik bhaskar me cartoon dekhta ho... aur aap se sikhne ki koshish karta rehata ho....
:)
Fantastic!!!!
हा हा!! प्रसाद बटें तो हम भी हाथ बढ़ा देंगे. :)
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