Sunday, January 10, 2010
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कमंडल और खड़ाऊं से लैस एक ऋषि ब्लॉगिया दुनिया में अवतरित हो गया है। चूंकि खड़ाऊं आम चल रहे हैं तो बचा कंमडल में श्राप या आशीर्वाद का जल। अब यह तो मनुष्य की मनुष्यता या दुष्टता पर निर्भर करेगा कि किसे क्या मिलेगा। कार्टूनों की यह बौछार नेताओं और नौकरशाहों के कर्म आचरण पर निर्भर करेगी..
2 comments:
मुर्गी, अंडे की कहानी है ये...अच्छी हाकी नहीं खेलते इसलिए पैसा नहीं ...पैसा नहीं इसलिए अच्छी हाकी नहीं खेल पाते...
हाकी का तो यही हाल है...
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